ज्यादा ईएमआई भरकर लोन को जल्द से जल्द खत्म करने का एग्रेसिव रीपेमेंट शेड्यूल लोन लेते वक्त किफायती लगता है. इससे आपको लोन पर कम ब्याज अदा करना पड़ता है, पर कई बार इसके चलते आप फाइनेंशियल प्रॉब्लम में भी फंस सकते हैं. इस तरह लोन लेते वक्त रीपेमेंट की अवधि पर गंभीरता से ध्यान न देना आपको महंगा पड़ सकता है. यह आपके रीपेमेंट शेड्यूल को बिगाड़ने के साथ ही कभी-कभी तो क्रेडिट स्कोर को खराब कर आपकी क्रेडिट हिस्ट्री को भी बिगाड़ देता है.
लोन लेते समय सबसे पहले ब्याज दर के प्रकार को समझना जरूरी है. लोन की ब्याज दरें दो तरह की होती हैं फिक्स्ड या फ्लोटिंग. दोनों के ही अपने-अपने फायदे और नुकसान हो सकते हैं और ये लोन की टोटल कॉस्ट को भी प्रभावित करती हैं.
- लोन लेते समय अकसर की जाने वाली इन 6 बड़ी गलतियों से कैसे बचें
लोन और क्रेडिट की आसान एक्सेस ने लोगों के लिए अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करना पहले से कहीं ज़्यादा आसान बना दिया है. हालांकि, लोन या उधार लेने की सुविधा कभी-कभी अपने साथ कुछ छिपे हुए जोखिमों भी लेकर आ सकती है. आप अगर इनको समझने में चूक करते हैं या समझदारी से हैंडल नहीं कर पाते, तो यह नासमझी आपको कर्ज के बोझ तले दबा सकती है.
लोन से जुड़े इन जोखिमों को समझना इसलिए भी जरूरी है कि आप डिफॉल्टर न बन कर भविष्य में भी अपनी आर्थिक जरूरतों के लिए लोन लेने के रास्ते खुले रख सकें. इसके लिए आज हम आपको लोन से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बातों और लोन लेते वक्त आमतौर पर की जाने वाली गलतियों के बारे में बताने जा रहे हैं.
फिक्स्ड, फ्लोटिंग रेट और APR को अच्छी तरह समझ लें
कर्ज लेते समय ब्याज दरों के प्रकारों को समझना बेहद जरूरी है. ये आमतौर पर दो तरह की होती हैं, फिक्स्ड और फ्लोटिंग रेट. ये लोन की कुल लागत यानी टोटल कॉस्ट को प्रभावित करते हैं. फिक्स्ड यानी निश्चित ब्याज दर लोन की पूरी अवधि के दौरान स्थिर रहती है, जिससे स्थिति मिलती है. दूसरी ओर, फ्लोटिंग या परिवर्तनीय दर बाजार की स्थितियों के मुताबिक बदलती रहती है. इससे लोन के मासिक भुगतान यानी EMI में उतार-चढ़ाव हो सकता है.
इसके अलावा लोन में तीसरी महत्वपूर्ण चीज होती है उसका APR, जिसका मतलब फीसदी में लोन की सालाना दर से है. यानी सालाना आधार पर आपको अपने लोन पर कितने फीसदी ब्याज देना पड़ रहा है. लोन का APR न केवल ब्याज दर को दर्शाता है, बल्कि लोन से जुड़ी अन्य लागतों को भी दर्शाता है, जैसे कि प्रोसेसिंग शुल्क, एडमिनिस्ट्रेटिव चार्जेज और अन्य खर्चे. उदाहरण के लिए कई बार भले ही लोन की ब्याज दर कम हो, लेकिन ज्यादा प्रोसेसिंग फीस लोन के APR को काफी बढ़ा देती है. ऐसे में लोन जितना दिखता है, वास्तव में उससे ज़्यादा महंगा हो जाता है. APR को समझने से आपको लोन की ओवरऑल कॉस्ट की स्पष्ट जानकारी मिल जाती है. साथ ही इसे समझ कर आप लोन ऑफरों की ज्यादा सटीक ढंग से तुलना कर अपने लिए सबसे बेहतर विकल्प चुन सकते हैं.
लोन का गलत कॉस्ट असेसमेंट पड़ सकता है भारी
लोन लेने वाले लोगों की सबसे बड़ी गलतियों में से एक यह भी है कि अकसर उन्हें इस बात एहसास नहीं होता कि उनकी जरूरतों की लागत कितनी है. चाहे वह शिक्षा के लिए हो, नया घर लेना या बनवाना हो या कोई बिजनेस करना हो. इन सब कामों में लागत का गलत आकलन करना अकसर उनके लिए परेशानी का कारण बन जाता है. इससे नकदी की कमी होने से आपकी रोजमर्रा के खर्चों में भी बाधा आ सकती है. साथ ही इमरजेंसी की स्थिति लोन की किस्त चुकाने में भी दिक्कतें आ सकती हैं. कुल मिलाकर यह आपकी वित्तीय स्थिति और आपकी फाइनेंशियल परफॉर्मेंस को प्रभावित कर सकता है. दूसरी ओर, यदि आप अधिक लोन लेते हैं, तो आपको बहुत अधिक मासिक भुगतान करना पड़ सकता है, जिससे आपकी जेब पर बोझ पड़ेगा और आपका तनाव बढ़ेगा. इसलिए सही तरीके से योजना बनाकर केवल उतना ही लोन लें, जितना चुका सकें ओर जिसकी आपको वास्तव में जरूरत है.
लोन के टर्न अराउंड टाइम के बारे में ले लें जानकारी
लोन अप्लाई करने से लेकर कर्ज की रकम मिलने तक लगने वाले समय को बैंकिंग की भाषा में लोन सैंक्शन टर्न अराउंड टाइम कहा जाता है. इसे समझना बहुत जरूरी है. लोन की प्रोसेसिंग और एक्सपेंस में देरी लोन लेने वाले के लिए समस्या पैदा कर सकती है. इससे रीपेमेंट डेडलाइन मिस होने या टाइम-सेंसिटिव मौकों का हाथ से निकल जाने जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इस जाल से बचने के लिए, लोन अप्लाई करने की प्रक्रिया जल्दी शुरू करें और सभी जरूरी दस्तावेज तैयार रखें. लोन की जल्द से जल्द मंजूरी के लिए बैंक या कर्जदाता से एक क्लीयर कम्युनिकेशन बनाए रखें. इन चीजों में सक्रियता यह सुनिश्चित करती है कि आपको जरूरत के वक्त पैसे मिल जाएं. इससे अंतिम समय में होने वाली भागदौड़ और उससे जुड़े तनाव से आप बचे रहेंगे.
रीपेमेंट शिड्यूल में गड़बड़ी से मिस हो सकती है EMI
बहुत तेज रीपेमेंट शिड्यूल के ऑप्शन को चुनना शुरू में कॉस्ट इफेक्टिव लग सकता है, लेकिन आगे चलकर इससे फाइनेंशियल परेशानियां हो सकती हैं.लोन रीपेमेंट के पहले कुछ वर्षों में कई तरह के अप्रत्याशित खर्चे आने पर EMI मिस हो सकती है, जिसके कारण आप पर लेट फीस यानी विलंब शुल्क लग सकता है. इससे आपका क्रेडिट स्कोर भी बिगड़ सकता है. यह आपकी फाइनेंशियल कंडीशन और भविष्य में लोन लेने के अवसरों में बाधा डाल सकता है.
इसलिए लोन रीपेमेंट के ऐसे ऑप्शन को चुनें जो आपको एक फिल्क्सेबिलिटी यानी लचीलापन प्रदान करे और आपकी आर्थिक स्थिति के अनुरूप हो. इसके लिए अपनी अर्निंग और भविष्य आने वाले किसी भी एक्सट्रा खर्च को ध्यान में रखते हुए रीपेमेंट ऑप्शन का चुनाव करना चाहिए. इसके अलावा लोन के प्रीपेमेंट ऑप्शन या फोरक्लोजर से जुड़ी शर्तों पर भी ध्यान देना चाहिए. उदाहरण के लिए यदि लोन को समय से पहले अदा करने पर यदि कर्जदाता आपसे 5 फीसदी फोरक्लोजर चार्ज लेता है, तो लोन का प्रीपेमेंट एक महंगा सौदा बन जाता है.
लोन रीपेमेंट के साथ ही कर लें इन्वेस्टमेंट की भी प्लानिंग
अपनी जरूरतों के लिए जल्दी फाइनेंशियल प्लानिंग करके लोन के बोझ को कम किया जा सकता है. यह ठीक उसी तरह है, जैसे पहले से किए गए छोटे और नियमित इन्वेस्टमेंट एक बड़ा फंड तैयार हो जाता है. इससे बड़ी रकम उधार लेने की जरूरत कम हो जाती है. जल्दी योजना बनाना और अनुशासित बचत आपको फाइनेंशियल सिक्योरिटी देती है. इससे लोन पर बहुत ज्यादा निर्भर हुए बिना खर्चों को संभाल पाना आसान हो जाता है. यह सक्रियता भरा रवैया आपकी लोन की जरूरतों को घटा सकता है.
अपने लोन को बेहतर ढंग से चुकाने का एक असरदार तरीका यह है कि आप अपने मंथली रीपेमेंट के एक निश्चित हिस्से के बराबर राशि का निवेश करना शुरू करें. उदाहरण के लिए, यदि आपने कोई लॉन्ग टर्म लोन लिया है, तो अपने मंथली रीपेमेंट के एक निश्चित हिस्से के बराबर रकम का इन्वेस्टमेंट करने से आपका एक पैरलल फंड बन सकता है. समय के साथ इस निवेश को बढ़ाने से आपको लोन को तेजी से चुकाने में मदद मिल सकती है. इससे आपको लोन के ब्याज के रूप में दिए जाने वाले पैसों को बचाने में मदद मिलेगी. इसके अलावा इससे आप में बचत और निवेश की आदत बन जाएगी, जो लॉन्ग टर्म में आपकी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाए रखने में मददगार होगी.
समझदारी से करें लोन के फाइनेंशियल टूल का इस्तेमाल
लोन या बॉरोइंग एक जरूरी फाइनेंशियल टूल है, बशर्ते इसका इस्तेमाल समझदारी से किया जाए और जिम्मेदारी से निभाया जाए. इसकी राह में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए सावधानीपूर्वक लोन की प्लानिंग और नेविगेशन करना जरूरी है. लोन की इफेक्टिव कॉस्ट का सटीक अनुमान लगाकर, लोन की शर्तों को अच्छी तरह से समझ कर, सही समय पर इन्वेस्टमेंट प्लान बना कर और फाइनेंशियल डिसिप्लिन की आदतों को अपना कर आप कर्ज के जाल में फंसे बिना अपनी फाइनेंशियल जरूरतों को पूरा कर सकते हैं. अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए लोन लेने से कतराएं नहीं. समझदारी से प्लानिंग करके लोन के जंजाल में फंसने से खुद को बचाएं.
0 टिप्पणियाँ
आपकी टिप्पणियों, प्रतिक्रियाओं व सुझावों का स्वागत है, पर भाषा की गरिमा और शब्दों की मर्यादा अवश्य बनाए रखें.