विदेश में सैर-सपाटे की बात करें, तो अपने देश में ज्यादातर लोगों के दिलो-दिमाग में पहला नाम आता है बैंकॉक का. बैंकॉक के क्लबों की चमक-दमक भरी नाइट लाइफ और पताया बीच पर मौज-मस्ती के फोटो एक स्टेटस सिंबल के तौर पर फेसबुक, इंस्टा पर शेयर करने का शगल खूब देखने को मिलता है. पर, वह दिन दूर नहीं, जब कम बजट में देश में ही घूमने वाले लोग विदेश भ्रमण का अपना अरमान आसानी से पूरा कर सकेंगे.
जी हां. बैंकॉक में मौज-मस्ती की ख्वाहिशें अगर आपके मन में भी हिलोरें मारती हैं और हवाई जहाज के महंगे टिकट के चलते मन मसोस कर रह जाते हैं, तो ये खबर आपको खुश कर सकती है. साल-दो साल में आपकी यह बाधा दूर हो सकती है, भारत को म्यांमार और थाईलैंड से जोड़ने वाले कोलकाता-बैंकॉक हाईवे के जरिये.
- महंगे हवाई टिकट की बाधा दूर करने जा रहा कोलकाता-बैंकॉक हाईवे
आइए, आपको बताते हैं इस अनूठे प्रोजेक्ट के बारे में, जिसे BIMSTEC के त्रिपक्षीय सहयोग के तहत शुरू किया गया है. कोलकाता-बैंकॉक हाईवे परियोजना भारत की पूर्व की ओर देखो नीति (लुक ईस्ट पॉलिसी) के तहत मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (BIMSTEC) के जरिये बंगाल की खाड़ी में क्षेत्र में चलाया जाने वाला प्रोजेक्ट है.
भारत-म्यांमार-थाईलैंड आएंगे करीब
कोलकाता-बैंकॉक राजमार्ग को त्रिपक्षीय राजमार्ग के रूप में भी जाना जाता है, यह इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है जो भारत, म्यांमार और थाईलैंड को सीधे सड़क मार्ग से जोड़कर इन देशों के बीच सहयोग, व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा देगी. यह हाईवे भारत के कोलकाता से शुरू होकर थाईलैंड के बैंकॉक तक जाएगा, जो म्यांमार से होकर गुजरेगा. इससे इन देशों के बीच व्यापारिक संबंध बेहतर होंगे और आर्थिक सहयोग भी मजबूत होगा. साथ ही पर्यटन में भी आसानी होगी.
2,800 किलोमीटर लंबी सड़क
थाईलैंड को इस 2,800 किलोमीटर लंबे मल्टी लेन राजमार्ग का सबसे छोटा हिस्सा मिलेगा जबकि भारत में सबसे लंबा कवरेज होगा. पूरा होने के बाद यह भारत के सबसे लंबे हाईवे प्रोजेक्ट्स में से एक होगा.
जमीं पर उतर रहा वाजपेयी का विजन
इस त्रिपक्षीय राजमार्ग (ट्राई लेटरल हाईवे) का प्रस्ताव भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2002 में भारत, म्यांमार और थाईलैंड के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने के लिए रखा था. प्रोजेक्ट में आई कई बाधाओं और लंबी देरी के बावजूद 2027 तक इस हाईवे के बनकर पूरा होने की उम्मीद है.
कोलकाता-बैंकॉक हाईवे से होने वाले फायदे
कई बड़े शहरों का जुड़ाव : यह राजमार्ग बैंकॉक, यांगून, मांडले और कोलकाता सहित तीन देशों के अन्य प्रमुख शहरों को जोड़ेगा. भारत में सिलीगुड़ी, गुवाहाटी और कोहिमा जैसे स्थानों को भी जोड़ा जाएगा, जिससे क्षेत्रीय संपर्क बेहतर होगा. यह राजमार्ग ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर और अयेयावाडी-चाओ फ्राया-मेकांग आर्थिक सहयोग रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. इससे भारत को कंबोडिया, लाओस और वियतनाम तक एक्सेस मिल सकेगा.
विदेश यात्रा का सस्ता विकल्प : इस हाईवे के चालू होने के बाद कोलकाता से बैंकॉक के बीच सड़क के जरिये जाने की सुविधा हो जाने से विदेश जाने के लिए हवाई यात्रा का एक सस्ता विकल्प मिलेगा, जिससे यात्रा के खर्च में कमी आने की उम्मीद है.
व्यापार में होगी बढ़ोतरी : कोलकाता-बैंकॉक हाईवे भारत और आसियान देशों के बीच निर्यात और आयात में तेजी से बढ़ोतरी को बढ़ावा देगा. इससे इन देशों के बीच आर्थिक संबंध बेहतर होंगे और व्यापार भी बढ़ेगा.
क्षेत्रीय सहयोग और प्रगति का प्रतीक : आकार में काफी बड़े और खर्चीले हाईवे प्रोजेक्ट को आर्थिक रूप से व्यावहारिक बनाने के लिए कई खंडों में बांट कर सावधानीपूर्वक इसकी योजना बनाई गई है, ताकि तीनों देशों के बीच आसानी से आने-जाने की सुविधा मिल सके. कोलकाता-बैंकॉक हाईवे के 2027 में चालू होने के बाद यह क्षेत्रीय सहयोग और प्रगति का प्रतीक बन जाएगा, जो दक्षिण-पूर्व एशिया के व्यापारिक और पर्यटन की संभावना को बदल देगा.
कोलकाता से लंदन के लिए भी चल चुकी है बस
अगर आपको बाई रोड कोलकाता से बैंकॉक तक का करीब 2,800 किलोमीटर लंबा सफर मुश्किल लग रहा है, तो आपको बता दें कि विदेश जाने के लिए दशकों पहले इससे भी लंबे सफर के लिए कोलकाता से ही बस सेवा शुरू की गई थी. जी नहीं, हम कोलकाता से नेपाल, भूटान, बांग्लादेश,बर्मा या पाकिस्तान जाने की बात नहीं कर रहे. कोलकाता से चलने वाली ये बस मुसाफिरों को ले जाती थी ब्रिटेन की राजधानी लंदन की सैर कराने.
आपके लिए भले ही इस बात पर यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा हो, पर यह कारनामा आज से छह दशक पहले ही कर दिखाया गया था. जी हां ! इस हैरतअंगेज़ बस सेवा की शुरुआत हुई थी 1957 में और 1970 तक जारी रही. इस सेवा की पहली बस 15 अप्रैल 1957 को लंदन से चली, जो लंदन से चल कर ठीक 50 दिन बाद 5 जून को कोलकाता (तब के कलकत्ता) पहुंची.
ये बस इंग्लैंड से निकल कर बेल्जियम, पश्चिमी जर्मनी, आस्ट्रिया, युगोस्लाविया, बुल्गारिया,तुर्की, इरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, होते हुए भारत पहुंचती थी. तेहरान, स्लेज़बर्ग, काबुल, स्तंबूल, वियाना और दिल्ली में यात्रियों को शॉपिंग करने का मौका भी दिया जाता था.
भारत में यह बस दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद और बनारस की सैर कराते हुए कलकत्ता पहुंचाती थी. यात्रियों को दिल्ली में राज पथ, लाल किले का मयूर सिंहासन, आगरा में ताज महल, बनारस में गंगा घाट और इलाहाबाद में संगम की सैर कराई जाती थी.
बस की यात्रा होकर भी यह सफर मुश्किलों भरा कत्तई नहीं था. इसमें उस समय के हिसाब से शानदार और आरामदायक व्यवस्थाएं यात्रियों के लिए होती थीं. बस में खाने-पीने की व्यवस्था के साथ ही सभी यात्रियों के सोने के लिए अलग-अलग स्लीपिंग बंक्स, पंखे, हीटर और संगीत की भी व्यवस्था थी. बस में पार्टियां भी की जाती थी.
बेहतरीन सुविधाओं से लैस इस यात्रा का टिकट 85 पाउंड यानी आज के हिसाब से करीब 9400 रुपये का होता था, जो कि उस समय के हिसाब से अच्छी खासी रकम होती थी. लंदन-कलकत्ता-लंदन के बीच संचालित यह बस सेवा 1970 तक चली.
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